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मनोरंजक कथाएँ >> सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते

दिनेश चमोला

प्रकाशक : एम. एन. पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2941
आईएसबीएन :0

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सत्य हमेशा विजयवान है ......

Satyamev Jayate-A Hindi Book by Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सत्यमेव जयते

सुभद्रा नदी के तट पर गरीब सोनव्रत नाम का कुम्हार रहता था। वह बहुत मेहनती व ईमानदार था। वह अपनी कला में निपुण था। नदी के दूसरी ओर सम्राट देवसेन का विशाल राज्य था। सोनव्रत जब भी अनोखे व सुन्दर बर्तन बनाता तो उन्हें राज दरबार में दिखाने के लिए ले जाता। यदि महाराज उन्हें स्वीकार कर लेते तो सोनव्रत को एक-एक कलाकृति का सैकड़ों का आदेश प्राप्त हो जाता है। आदेश पाकर सोनव्रत बहुत प्रसन्न हो उठता। नदी के दूसरी ओर जाने के लिए वहाँ कई नावें चलती थीं। सोनव्रत नाव में बैठकर ही दूर-दूर के इलाकों की कीमती मिट्टी समेट लाता।

एक दिन सोनव्रत रोज की ही तरह नाव में बैठकर सुभद्रा नदी के उत्तर की ओर गया। लेकिन बहुत ढूँढ़ खोज के बाद भी उसे किसी प्रकार की मिट्टी कहीं प्राप्त नहीं हुई। वह निराश होने लगा। तभी उसने बड़े पेड़ के नीचे चमचमाती हुई लाल मिट्टी देखी। उसने ऐसी मिट्टी के बर्तन कभी न बनाए थे। इसलिए उसने सोचा क्यों न आज इसी मिट्टी का प्रयोग करके देखा जाए। वह मिट्टी का प्रयोग करके देखा जाए। वह मिट्टी खोदने लगा। खोदते-खोदते उसने देखा, मिट्टी का रंग बदलता जा रहा था। वह यह देख बहुत प्रसन्न हुआ। आज तक उसे एक जगह से केवल एक ही रंग की मिट्टी प्राप्त होती थी। वह मन ही मन सोचने लगा कि अब इस बहुरंगी मिट्टी से बने बर्तनों का महत्व और बढ़ जाएगा। वह इस प्रकार के बर्तन बनाने वाला सबसे पहला कुम्हार होगा वह मन-ही-मन बड़बड़ाने लगा-

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